दलालों का अड्डा और
अधिकारियों की चुप्पी
सीतापुर। मऊगंज जिले के सीतापुर क्षेत्र में जंगल विभाग की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं। स्थानीय जनता और मीडिया के तीखे आरोप हैं कि यहां के अधिकारी अपनी जिम्मेदारियों से पूरी तरह विमुख हो चुके हैं और भ्रष्टाचार को परोक्ष रूप से बढ़ावा दे रहे हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि विभाग में सीधे तौर पर नहीं, बल्कि दलालों के माध्यम से अवैध गतिविधियां संचालित हो रही हैं, जिसमें अधिकारी मूकदर्शक बने हुए हैं।
सामने आया एक और मामला: अधिकारियों की जवाबदेही पर सवाल
ताजा घटनाक्रम मंगलवार सुबह का है, जब एक ट्रैक्टर से लदा हुआ पत्थर-पटिया सड़क किनारे खड़ा पाया गया। इस अवैध गतिविधि की सूचना देने के लिए मीडिया ने तत्काल विभागीय अधिकारियों से संपर्क साधने का प्रयास किया। हालांकि, चौंकाने वाली बात यह रही कि एक भी जिम्मेदार अधिकारी ने फोन उठाना उचित नहीं समझा। यह कोई इकलौता मामला नहीं है; बताया जा रहा है कि जब भी भ्रष्टाचार या अनियमितता की कोई जानकारी दी जाती है, अधिकारी चुप्पी साध लेते हैं या "रिश्तों और व्यवहार" की आड़ लेकर टालमटोल करते हैं। फोन न उठाना इन अधिकारियों की मानो नई पहचान बन गई है, जिससे उनकी जवाबदेही पर गंभीर प्रश्नचिह्न लग गया है।
"दलाल तंत्र" का बोलबाला: परदे के पीछे से खेल
स्थानीय नागरिकों का स्पष्ट आरोप है कि जंगल विभाग में सीधे तौर पर भ्रष्टाचार की बजाय एक "दलाल तंत्र" सक्रिय है। अधिकारी स्वयं इन दलालों को खुली छूट दे रहे हैं और परदे के पीछे से 'व्यवहार' निभाने में व्यस्त हैं। ये सरकारी कुर्सियों पर बैठकर केवल 'संपर्क' निभा रहे हैं, अपनी मूल जिम्मेदारियों से मुंह मोड़ रहे हैं। बहेराडाबर और आसपास की पहाड़ियों में चल रहा यह दलाल तंत्र क्षेत्र में व्यापक आक्रोश का कारण बन गया है।
मिलीभगत के संकेत और अवैध गतिविधियों को छूट
सूत्रों के मुताबिक, मऊगंज से ही कुछ दलालों को यह संकेत मिल जाता है कि क्षेत्र में कोई चेकिंग नहीं होगी या अधिकारी के आने की सूचना उन्हें पहले ही पहुंचा दी जाती है। इस मिलीभगत का सीधा लाभ अवैध गतिविधियों में लिप्त लोगों को मिलता है, जिन्हें बचने का पर्याप्त समय मिल जाता है, और विभाग जानबूझकर आंखें मूंदे रहता है। यह स्थिति न केवल जंगल विभाग की विश्वसनीयता पर सवाल उठाती है, बल्कि एक संगठित रिश्वतखोरी और लापरवाही की ओर भी इशारा करती है।
प्रशासन की विश्वसनीयता पर प्रश्नचिह्न
यह चिंताजनक स्थिति केवल जंगल विभाग तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इसने संपूर्ण प्रशासन की विश्वसनीयता पर प्रश्नचिह्न लगा दिया है। एक तरफ जहां पत्रकार भ्रष्टाचार की सूचना देने का प्रयास कर रहे हैं, वहीं अधिकारी फोन उठाना भी जरूरी नहीं समझते। यह स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि जिम्मेदार पदों पर बैठे लोग अपने कर्तव्यों के प्रति कितने उदासीन हो गए हैं।
क्या होगी कार्रवाई?
अब सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि क्या इन भ्रष्ट अधिकारियों और इस 'दलाल तंत्र' पर कोई शिकंजा कसा जाएगा? या फिर यह मामला भी अन्य विभागों की तरह फाइलों में दबकर रह जाएगा? स्थानीय मीडिया लगातार जनता की आवाज सरकार तक पहुंचाने का प्रयास कर रही है, लेकिन जब तक उच्च अधिकारी इस मामले पर संज्ञान लेकर ठोस कार्रवाई नहीं करते, तब तक स्थिति में सुधार की उम्मीद कम ही है। इस पूरे मामले में तत्काल और निष्पक्ष जांच की आवश्यकता है ताकि दोषियों को बेनकाब किया जा सके और सीतापुर के जंगल विभाग को भ्रष्टाचार के इस चंगुल से मुक्त कराया जा सके।
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