अर्जुन के तीर के पीछे क्या नफरत की ताकत थी?
सत्य घटना
जब दुर्योधन चार पांच साल का छोटा बच्चा था, तभी से वह कुछ ना कुछ शैतानियां करके पांडव पुत्रो को परेशान करने की कोशिश करता रहता था! दुर्योधन के इस स्वभाव को दुर्योधन के पिता अच्छी तरह से जानते थे,लेकिन उन्होंने उसे एक बार भी नहीं रोका ऐसा करने से!बच्चे बड़ों की सहमति मिलते रहने से ही तो गलत को सही साबित करते हैं!जैसे दुर्योधन गलत कार्य करने पर भी उस कार्य को सही बताता था!
देखते ही देखते दुर्योधन और दुर्योधन के भाई और पांच पांडव बड़े हो चुके थे! कहने के लिए तो यह आपस में एक ही परिवार के बच्चे थे,आपस में भाई भाई का रिश्ता था इन सबका!लेकिन दुर्योधन के मन में ऐसा कोई रिश्ता जन्म नहीं ले पाया था,क्यों क्योंकि दुर्योधन के पिता धृतराष्ट्र ने ऐसे रिश्ते को कभी जन्म लेने ही नहीं दिया था दुर्योधन के मन में!लेकिन अर्जुन और अर्जुन के जो चारों भाई थे,उनको बचपन से ही सिखाया गया था कि यह तुम्हारा परिवार है,और यह सब तुम्हारे भाई हैं सब तुम्हारे अपने हैं,और अपना ही परिवार दुख सुख में काम आता है चाहे जैसा भी हो!यही बात अर्जुन को शुरू से सिखाई गई थी और यही बात अर्जुन की परेशानी का सबसे बड़ा कारण भी बनी! अर्जुन को यह तो सिखाया गया कि यह अपने हैं,लेकिन जब अपने ही अपनों के खिलाफ खड़े हो जाए तब क्या करे?
जब दुर्योधन के षड्यंत्रओं ने पांचों पांडवों का जीना मुश्किल कर दिया,तब भी अर्जुन के दिमाग में सिर्फ यही आता था कि यह मेरा भाई है, लेकिन अंदर ही अंदर घुट भी रहे थे कि जिसको मैं अपना भाई मानता हूं मेरे साथ ऐसा क्यों कर रहा है? मेरे ही परिवार का सदस्य होकर, मुझे समस्त संपत्ति,जमीन,और अपने अधिकारों से वंचित क्यों कर रहा है? और अगर यह अपना ही परिवार है तो मेरी ही अपनी पत्नी के साथ,जो दुर्योधन की भी रिश्ते में कुछ लगती हैं ऐसा व्यवहार और अत्याचार क्यों?
दुर्योधन के इन्हीं सब अत्याचारों के बढ़ते बढ़ते महाभारत का युद्ध होने का निर्णय हो चुका था, क्योंकि दुर्योधन को,परिवार के जो बड़े सदस्य थे,समझाने की जगह उसके साथ खड़े हो गए थे,क्यों क्योंकि वो जानते थे कि दुर्योधन जो कहता है, वह करता है,वह किसी की नहीं सुनता है,इसलिए उसके गलत कार्यों में साथ देने के लिए भी सब उसके साथ खड़े थे! इन सब बातों को देखकर अर्जुन अंदर से खुद को कमजोर और दुखी महसूस कर रहे थे, यह क्या हो रहा है,एक ही परिवार में जो मेरे रिश्ते में चाचा, ताया और दादा लगते है मैं उनके खिलाफ खड़ा हूं युद्ध के मैदान में,अर्जुन के मन में अपनों के प्रति अभी भी नफरत का भाव नहीं आया था!
फिर भी अर्जुन ने युद्ध के मैदान में विजय कैसे पाई सब पर?जिनको वह अपना मानते थे उनसे वह युद्ध कैसे कर पाए, किसकी ताकत थी इसके पीछे,क्या इसके पीछे श्री कृष्ण जी की ताकत थी?क्या दुर्योधन से नफरत की ताकत थी? नहीं.................
अर्जुन के तीर के पीछे गीता के ज्ञान की ताकत थी, जब अर्जुन युद्ध के मैदान में अपनों को देख कर अपना आत्म संतुलन खो बैठे,कि मैं अपनों पर ही तीर कैसे चलाऊं,जबकि अर्जुन धनुष विद्या में सबसे ज्यादा निपुण और पारंगत थे,तब भी अर्जुन समझ नहीं पा रहे थे,कि जो सामने उनके खड़े हैं, वह भी तो अर्जुन के अपने थे, जो अर्जुन पर तीर चलाने के लिए एकदम तैयार थे!लेकिन अर्जुन युद्ध के मैदान में भी खड़े होने के बाद भी उनको अपना ही समझे जा रहे थे!तब श्री कृष्ण जी ने अर्जुन को गीता का ज्ञान दिया था,तब अर्जुन को अपने और पराए, सही और गलत,न्याय और अन्याय,सब बातें समझ में आ गई,गीता के ज्ञान के उपदेश से,तब अर्जुन ने अपने धनुष पर तीर चढ़ाने में जरा भी संकोच नहीं किया!क्यों क्योंकि गीता हमें जीवन जीने का सार सिखाती है,जो ज्ञान से भरी हुई है,जो हर पल हमारी हर समस्याओं का समाधान करती है, गीता हमें अपनी जिम्मेदारियां ठीक से निभाना सिखाती है,जब भी हम दुविधाओं के रास्ते पर खड़े हुए हो! इसीलिए हमें अपने बच्चों को गीता का पाठ शुरू से जरूर पढ़ाना चाहिए,ताकि बच्चा अपने फैसले लेने में सक्षम हो जाए,वह किसी दुविधा में ना रहे कभी भी!
तो आप सब जान चुके होंगे कि अर्जुन के तीर के पीछे नफरत की ताकत नहीं,गीता के ज्ञान की ताकत थी! ज्ञान इंसान को मजबूत बनाता है!और नफरत इंसान को कमजोर बनाती है, जैसे दुर्योधन अर्जुन से नफरत करते-करते कमजोर हो गया था युद्ध के मैदान में,नफरत से कोई भी युद्ध कभी भी नहीं जीता जा सकता है!इसलिए हमें किसी से नफरत नहीं करनी है, हमे तो गीता का ज्ञान लेकर युद्ध लड़ना है जीवन युद्ध!
लेखिका डॉ हर्ष प्रभा
उत्तर प्रदेश गाज़ियाबाद
समाज सेविका पर्यावरणविद एवं लेखिका

0 Comments