ब्लड का काला कारोबार,
शिकायत के बाद पुलिस
ने दो को पकड़ा
गोरखपुर(राम आसरे)। गोरखपुर का बीआरडी मेडिकल कॉलेज इंसेफेलाइटिस को लेकर कई दशक तक सुर्खियों में रहा। लेकिन इस बार ये ब्लड के गोरखधंधे को लेकर चर्चा में आ गया है। इस गोरखधंधे में शामिल लोग पैसों का लालच लेकर मजदूरों, गरीबों को ब्लड डोनेट के नाम पर लेकर आते और फिर खून लेने के बाद उचित पैसे भी नहीं देते। बीआरडी मेडिकल कॉलेज के आसपास इस तरह का धंधा खूब फल-फूल रहा है. फिलहाल, पुलिस ने दो आरोपियों को अरेस्ट किया है।
दरअसल, पिछले कुछ समय से बीआरडी मेडिकल कॉलेज के बाहर ब्लड डोनेशन का गोरखधंधा जोर पकड़ रहा है। जहां ब्रोकर मजदूरों को प्रति यूनिट ब्लड के 10 से 12 हजार रुपये पेमेंट का लालच देकर लाते हैं और 1000 से 1200 रुपये देकर भगा देते हैं। एक मजदूर की शिकायत पर जब मामला खुला तो पुलिस ने दो आरोपियों को अरेस्ट कर लिया। पुलिस अब इस बात की जांच कर रही है कि इनका रैकेट कहां तक फैला हुआ है और अब तक इन लोगों ने कितने लोगों का खून बेचा है। गोरखपुर पुलिस ये सारे आंकड़े जुटाने में लगी है। वहीं, इसको लेकर बीआरडी मेडिकल ब्लड बैंक की प्रभारी ने बताया कि पकड़े गए लोग यहां के कर्मचारी नहीं है। इन संदिग्ध लोगों के खिलाफ जांच की जा रही है। जांच के बाद उनके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। गोरखपुर के एसपी नार्थ मनोज कुमार अवस्थी ने सोमवार को इस घटना का खुलासा किया। इस दौरान पकड़े गए दोनों ब्रोकर को भी मीडिया के सामने हाजिर किया गया। एसपी ने बताया कि बीआरडी मेडिकल कॉलेज के ब्लड डोनेट सेंटर पर ब्लड डोनेट करने की प्रक्रिया का नियम पूर्वक पालन किया गया है। लेकिन ब्लड बैंक के बाहर दोनों आरोपी ऐसे लोगों की तलाश में रहते रहे है जिनके मरीजों को ब्लड की जरूरत रहती थी। ये आरोपी एक यूनिट ब्लड के लिए परेशान तीमारदारों से 10-12 हजार रुपये लेकर मजदूर की तलाश में निकल जाते थे।
पुलिस के मुताबिक, पकड़े गए आरोपियों के नाम वसील खान और केशर देव है। इनको महराजगंज के रहने वाले गोरख चौहान की शिकायत पर पकड़ा गया है। वसील और केशर दोनों मार्केट में ऐसे मजदूरों की तलाश करते थे जिन्हें तीन-चार दिन से काम नहीं मिला होता था। ये उन मजदूरों को एक यूनिट खून के बदले 10 से 12 हजार रुपये तक देने का लालच देकर बीआरडी मेडिकल कॉलेज ले जाते। फिर वहां पर ब्लड निकलवाने के बाद इन्हें 1 हजार से 12 सौ रुपये देकर डरा-धमका कर भगा देते थे। जिस मरीज को ब्लड की जरूरत रहती, उनके तीमारदारों को पहले से सेट कर उनसे अच्छी खासी रकम वसूल लेते थे। यानी खुद ब्लड के बदले मोटी रकम हड़पते और डोनर को महज कुछ सौ रुपये देते।
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