हकमेरो द्वारा चाय पानी के
नाम पर रिश्वतखोरी करने
के चलन नया नहीं है!
चाय-पानी 👇
हक़मारों द्वारा चाय-पानी के नाम पर रिश्वतखोरी करने का चलन नया तो बिल्कुल नहीं है। दफ्तरों में दरख्वास्त लेकर पहुंचने वाले फरियादी तो इसके आदि होते हैं हर हाल में सामना तो उनको करना हीं पड़ता है। मूल और शाखा की टोह लेने में ताउम्र गुजर जायेगी। ये अलग बात हुई आप इसके भुक्तभोगी नहीं है।पिछले दिनों नैतिक मूल्यों की शिक्षा और रक्षा को लेकर चलाये जा रहे जागरूकता कार्यक्रम में चाय-पानी विषय पर स्कूली बच्चों की नाट्य प्रस्तुति ने मौजूद लोगों को आत्मचिंतन के लिए मजबूर कर दिया। लोगों का मानना था कि महज कथनी और खानापूर्ति से हम नैतिक जिम्मेदारी दूसरों पर कतई नहीं थोप सकते !बल्कि उसे पवित्रता के साथ आत्मसात करने की दृढ़़-संकल्पता भी जरूरी है।
वैसे चतरा जिला का टंडवा पिछले एक दशक से चाय-पानी के शौकीन साहबों का सर्वाधिक पसंदीदा जगहों में एक बरकरार है। एकबार जो यहां आ जायें तो उन्हें जाने का कतई दिल नहीं करता! कुछ साहब वर्षों से जमे हैं।खनन, परिवहन और भू- राजस्व क्षेत्र का तो क्या कहना।इन क्षेत्रों का बस एक मौका जीवन भर पीछे मुड़कर कभी देखने की जरूरत नहीं पड़ता। देखते हीं देखते यहां फाइलें कैसी उड़ती है कोई नहीं जानता। ऐसे में, तिकड़म से किसी को दो-चार बार अगर मौका मिल जाये तो क्या मज़ाल मुकाबले की कोई बात भी करे।
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