पुराने रीति-रिवाजों और पूजा
पद्धति को भूल रही है
युवा पीढ़ी: सुखराम मुंडा
खूंटी, 14 मई (हि.स.)। आदिवासी संस्कृति विश्व की सबसे पुरानी संस्कृति है। आदिवासी जीवन पद्धति प्रकृति से जुड़ी हुई है और इसी पर आधारित होकर उनका जीवन चलता है। ये बातें भगवान बिरसा मुंडा के प्रपौत्र सुखराम मुंडा ने कही। सुखराम मुंडा बुधवार को आदिवासी संस्कृति संवर्धन के उद्देश्य से लीड्स रिसोर्स सेंटर, पेरका, मुरहू में आयोजित आदिवासी समागम को मुख्य अतिथि के रूप में सबोधित कर रहे थे।
कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि के रूप में पूर्व एसबीआई लीड बैंक मैनेजर अनिल सिंह शामिल हुए। अतिथियों ने संयुक्त रूप से दीप जलाकर कार्यक्रम का उद्घाटन किया। मुख्य अतिथि सुखराम मुंडा ने कहा कि वर्तमान में आदिवासी संस्कृति के पुराने रीति-रिवाजों, खान-पान और पूजा पद्धति को युवा आदिवासी वर्ग भूलता जा रहा है।
समाज में नशा पान का प्रचलन भी बढ़ता जा रहा है। आदिवासी समाज और समाज के युवा पीढ़ी को यह विश्लेषण करना चाहिए कि हम अपने समाज को आगे किस रूप में देखना चाहते हैं। विशिष्ट अतिथि अनिल सिंह ने कहा कि आदिवासी संस्कृति के रीति-रिवाजों में ज्ञान विज्ञान समाहित है। आदिवासी समाज की कृषि और कला की पारंपरिक विधियों से भी काफी कुछ सीखा जा सकता है। लीड्स के निदेशक एके सिंह ने कहा कि आज का युग तकनीकी युग है। ऐसे में नई और पुरानी संस्कृति में तालमेल बनाकर आगे बढ़ना होगा। ग्राम की संस्थाएं, पंचायत और अभिभावक समिति को शिक्षा के स्तर को आगे बढ़ाने के लिए कार्य करना होगा। इससे पूर्व लीड्स की निर्झरिणी रथ ने अपने स्वागत संबोधन में बताया कि आदिवासी संस्कृति के संरक्षण और विकास को लेकर संस्था मुरहू प्रखंड के 10 गांवों में पारंपरिक ग्राम सभा, आदिवासी युवा समूह, आंगनबाड़ी सेविकाओं और शिक्षकों के साथ काम कर रही है। उद्देश्य यह है कि आज की पीढ़ी अपनी समृद्ध आदिवासी संस्कृति, परंपरा, नृत्य-गान, खान पान, रीति रिवाज को समझें, गर्व करें और आगे बढ़ाने का काम करें। कार्यक्रम के दौरान बच्चों के द्वारा कई सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किए गए। आंगनबाड़ी सेविकाओं ने भी आदिवासी गान की प्रस्तुति की। कार्यक्रम में आदिवासी समाज के प्रतिनिधि, महिला समूह सदस्यों, युवा वर्ग और आंगनबाड़ी सेविकाएं उपस्थित थे।

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