नेपाल में युवाओं का आक्रोश, सत्ता पलट और दक्षिण
एशिया की राजनीति-एक अंतरराष्ट्रीय विश्लेषण

गोंदिया - नेपाल में पिछले कुछ दिनों में घटित राजनीतिक घटनाक्रम ने पूरे दक्षिण एशिया को हिला दियाहै।भ्रष्टाचार और परिवारवाद से त्रस्त जनता, खासकर युवाओं के जबरदस्त आक्रोश ने मात्र 36 घंटे में सत्ता की गद्दी हिला दी। पाँच पूर्व प्रधानमंत्रियों पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों ने स्थिति को और अधिक उग्र बना दिया। सत्ता पलट की इस तेज़ी ने यह संकेत दिया है कि नेपाल की जनता अब किसी भी कीमत पर अपारदर्शी शासन स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है। जिस प्रकार आम लोग और युवा सड़कों पर उतरे, उसने यह साफ कर दिया कि दक्षिण एशिया में लोकतंत्र तभी जीवित रह सकता है जब वह जनता के विश्वास पर आधारित हो।नेपाल की कुल जनसंख्या का लगभग 20 प्रतिशत यानी 62 लाख लोग युवा हैं, और यही वर्ग देश की राजनीति का भविष्य तय करने वाला है। मैं एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं गोंदिया महाराष्ट्र यह मानता हूं कि वैश्विक स्तर पर भी यह बात स्पष्ट है कि, किसी भी देश का भविष्य उसकी युवा पीढ़ी के हाथों में होता है। नेपाल के युवाओं ने इस बार भ्रष्टाचार और पारिवारिक राजनीति के खिलाफ अपनी ताकत दिखाकर पूरे विश्व को एक सशक्त संदेश दिया है कि अब युवा पीढ़ी "नेपो बेबीस" यानी नेताओं के बच्चों और वंशवाद की राजनीति को बर्दाश्त नहीं करेगी। युवाओं की इस ऊर्जा ने नेपाल की राजनीति को हिला कर रख दिया है और यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या जनरेशन-ज़ेड (गेन ज़ेड) अब नेपाल का नया इतिहास लिखने जा रही है?
साथियों बात अगर हम नेपाल में हालात इस कदर हद तक बिगड़ बिगड़ने की करें तो, तीनों बड़ी पार्टियों,नेपाली कांग्रेस, नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी और माओवादी सेंटर,के नेताओं के घरों मेंघुसकर लोगों ने मारपीट की, घरों को आग के हवाले कर दिया और वित्तमंत्री को सड़कों पर घसीटा गया। एक पूर्व प्रधानमंत्री के घर में आगजनी के दौरान उनकी पत्नी की मौत हुई तो उधर जनाक्रोश को और अधिक भड़का दिया। यह दृश्य केवल राजनीतिक विद्रोह का नहीं बल्कि व्यवस्था के खिलाफ पूर्ण असंतोष का प्रतीक है। युवाओं का यह क्रोध इस बात का संकेत है कि अब पारंपरिक राजनीति को बदलने का समय आ चुका है।
साथियों बात अगर हम नेपाल की स्थिति की तुलना श्रीलंका और बांग्लादेश से करने की करें तो,जहाँ हाल के वर्षों में आर्थिक संकट और राजनीतिकअस्थिरता ने जनता को सड़कों पर ला दिया था। श्रीलंका में राष्ट्रपति भवन तक जनता का कब्जा, बांग्लादेश में चुनावी धांधली के खिलाफ आंदोलन और म्यांमार में सैन्य तख्तापलट ने दक्षिण एशिया की राजनीति को लगातार अस्थिर बना रखा है। अब नेपाल भी उसी राह पर चलते हुए सत्ता पलट की कगार पर पहुंच गया है। इसका सीधा संकेत है कि भ्रष्टाचार और परिवारवाद से जूझ रहे समाजों में युवा अब चुप बिल्कुल नहीं बैठेंगे।
साथियों बात अगर हम नेपाल क़े इस पूरे घटनाक्रम में सोशल मीडिया की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण होने की करें तो, नेपाल की लगभग 87 प्रतिशत आबादी मोबाइल इंटरनेट का उपयोग करती है, जबकि 62 प्रतिशत लोग सक्रिय रूप से फेसबुक का इस्तेमाल करते हैं। ट्विटर और यूट्यूब पर भी युवा लगातार अपने विचार साझा कर रहे हैं। नेताओं के बच्चों द्वारा सोशल मीडिया पर अपने आलीशान जीवन और लग्ज़री छुट्टियों की तस्वीरें पोस्ट करना आग में घी का काम साबित हुआ। जब देश की जनता महंगाई, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार से जूझ रही हो और नेता तथा उनके परिवार ऐशो- आराम की तस्वीरें साझा करें, तो यह जनता के लिए असहनीय हो जाता है। यही वजह है कि सोशल मीडिया ने जनाक्रोश को संगठित आंदोलन में बदल दिया।
साथियों बात अगर हम भारत के पड़ोस में यहराजनीतिक उथल- पुथल चिंता का विषय होने की करें तो,नेपाल बांग्लादेश,श्रीलंका म्यांमार और पाकिस्तान सभी वर्तमान में या तो राजनीतिक अस्थिरता से गुजर रहे हैं या सत्ता परिवर्तन की प्रक्रिया में हैं। म्यांमार में सेना का शासन है, पाकिस्तान में सरकार और सेना के बीच टकराव है, श्रीलंका अब भी आर्थिक संकट से जूझ रहा है, और बांग्लादेश में युवाओं के विद्रोह ने लोकतंत्र को झकझोर दिया है।इन सबके बीच नेपाल का यह आंदोलन दक्षिण एशिया में एक नई लहर पैदा कर सकता है।इतिहास की दृष्टि से देखें तो श्रीलंका,पाकिस्तान और म्यांमार कभी अखंड भारत का हिस्सा रहे थे। आज वे दक्षिण एशिया का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं और सभी देशों में एक जैसी राजनीतिक चुनौतियाँ दिखाई दे रही हैं, भ्रष्टाचार बेरोजगारी, परिवारवाद, लोकतांत्रिक संस्थाओं की कमजोरी और युवा असंतोष। यही वजह है कि नेपाल की घटनाएँ केवल एक देश की समस्या नहीं बल्कि पूरे क्षेत्र की राजनीति के लिए चेतावनी हैं।
साथियों बात अगर हम नेपाल के घटनाक्रम नेपाल में सत्ता पलट का भारत पर सीधा प्रभाव पड़ना स्वाभाविक होने की करें तो,भारत और नेपाल के बीच गहरे सांस्कृतिक, आर्थिक और भौगोलिक संबंध हैं। दोनों देशों की खुली सीमा, व्यापार, पानी और ऊर्जा परियोजनाएँ भारत को नेपाल के साथ मजबूती से जोड़ती हैं।यदि नेपाल में राजनीतिक अस्थिरता बढ़ती है तो इसका असर भारत की सुरक्षा, सीमावर्ती क्षेत्रों की शांति और आर्थिक हितों पर अवश्य पड़ेगा। चीन और पाकिस्तान जैसे देश नेपाल में बढ़ती अस्थिरता का फायदा उठाकर भारत विरोधी गतिविधियों को प्रोत्साहित कर सकते हैं। इसलिए भारत के लिए यह आवश्यक है कि वह नेपाल की स्थिरता और लोकतांत्रिक प्रक्रिया को समर्थन दे।
साथियों बात अगर हम युवाओं के जागरूकता की करें तो नेपाल का यह विद्रोह यह भी दर्शाता है कि दक्षिण एशिया के युवाओं में अब जागरूकता का स्तर काफी बढ़ चुका है। वे केवल भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन तक सीमित नहीं हैं, बल्कि लोकतंत्र को पारदर्शी और जवाबदेह बनाने के लिए आगे आ रहे हैं। "नेपो बेबीस" और पारिवारिक राजनीति के खिलाफ उठी यह आवाज़ अब केवल नेपाल तक सीमित नहीं रहेगी,बल्कि बांग्लादेश,श्रीलंका, पाकिस्तान और यहाँ तक कि भारत में भी राजनीतिक वंशवाद के खिलाफ नई बहस को जन्म देगी।आगे चलकर नेपाल के लिए सबसे बड़ी चुनौती यह होगी कि यह जनआंदोलन केवल सत्ता पलट तक सीमित न रह जाए, बल्कि एक स्थायी और पारदर्शी व्यवस्था में बदल सके। यदि यह आंदोलन केवल भावनाओं के आधार पर चला और संस्थागत सुधारों तक नहीं पहुँचा, तो नेपाल बार-बार उसी राजनीतिक अस्थिरता का शिकार होगा जो पिछले तीन दशकों से जारी है। लेकिन यदि युवा इस ऊर्जा को सही दिशा देते हैं, तो नेपाल न केवल खुद को बदल सकता है बल्कि पूरे दक्षिण एशिया के लिए प्रेरणा बन सकता है।
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि नेपाल में युवाओं का आक्रोश, सत्ता पलट और दक्षिण एशिया की राजनीति-एक अंतरराष्ट्रीय विश्लेषणविश्व मेँ युवा पीढ़ी ही अपनें देश की राजनीति का भविष्य तय करने वाली है
नेपाल में भ्रष्टाचार व परिवारवाद के खिलाफ़ युवाओं क़े जबरदस्त आक्रोश को दुनियाँ के हर देश क़ो संज्ञान में लेना ज़रूरी हैँ।
-संकलनकर्ता लेखक - कर विशेषज्ञ स्तंभकार साहित्यकार अंतरराष्ट्रीय लेखक चिंतक कवि संगीत माध्यमा सीए (एटीसी) एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र 9226229318
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