पुरूष

पुरूष



पुरुष के लिए कहां आसान रहा

" पुरुष हो जाना "

सबको खुश रखना

सब को समझ पाना

सबको संभालना

उसकी कोशिश रही,

सब कुछ सरल बनाना

हां पुरुष ही है " खुशियों का खजाना " ।।

पुरुष के लिए कहा आसान रहा

" पुरुष हो जाना "

यातनाएं सब सहन की ,

परिवार पालने की खातिर ,

सर्दी गर्मी नही देखी जिसने

अपने कर्तव्यों के खातिर ,

" पुरुषत्व "से ही पुरुष हुआ ।

हां पुरुष ही हैं " खुशियों का खजाना" ।।

पुरुष के लिए कहा आसान रहा

"पुरुष हो जाना "

उसकी हर खुशी उधार रही

सबकी खुशियों के लिए

करता रहा मेहनत सारी

स्त्री के हर रूप का सहयोगी

जिसकी खुशी से खुश गृहस्थी सभी ,

हां पुरुष ही है " खुशियों का खजाना " ।।

आशी प्रतिभा दुबे (स्वतंत्र लेखिका)

मध्य प्रदेश भारत

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