छत्तीसगढ़ में मीडिया पर सेंसरशिप का प्रयास विफल: मुख्यमंत्री ने "काला कानून" रद्द किया, पत्रकारों की एकजुटता की जीत।

छत्तीसगढ़ में मीडिया पर 

सेंसरशिप का प्रयास विफल:

 मुख्यमंत्री ने "काला कानून"

 रद्द किया, पत्रकारों की एकजुटता की जीत


पत्रकार राम आसरे की खास रिपोर्ट।

नई दिल्ली। छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा सरकारी अस्पतालों में मीडिया कवरेज पर प्रतिबंध लगाने वाला विवादास्पद आदेश रद्द कर दिया गया है। इस फैसले को भारतीय मीडिया फाउंडेशन और "द सूत्र" जैसे प्रमुख मीडिया संगठनों एवं समाचार पत्रों के द्वारा प्राथमिकता से उठाए गए मामले पर एक बड़ी जीत माना जा रहा है।
"द सूत्र" ने इस आदेश को "काला कानून" करार दिया था, जबकि भारतीय मीडिया फाउंडेशन ने इसे "लोकतंत्र के साथ घोर अन्याय" और "मीडिया की अभिव्यक्ति की आजादी छीनने" का प्रयास बताया था।

छत्तीसगढ़ मुख्यमंत्री की नाराजगी और त्वरित कार्रवाई:-

प्राप्त जानकारी के अनुसार, मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने छत्तीसगढ़ के स्वास्थ्य महकमे द्वारा जारी इस आदेश पर कड़ी नाराजगी व्यक्त की। उन्होंने न केवल तत्काल प्रभाव से इसे रद्द करने के निर्देश दिए, बल्कि अधिकारियों को भविष्य में ऐसी स्थिति निर्मित न होने देने की कड़ी हिदायत भी दी। सूत्रों की मानें तो जैसे ही यह आदेश मुख्यमंत्री के संज्ञान में आया, उन्होंने प्रशासनिक स्तर पर इसे अविलंब रद्द करने का निर्देश दिया।

पत्रकारों और मीडिया संगठनों की एकजुटता का परिणाम:-

भारतीय मीडिया फाउंडेशन के संस्थापक ए.के. बिंदुसार ने इस फैसले पर खुशी व्यक्त करते हुए कहा कि "जब-जब मीडिया पर संकट का बादल मंडराता है, तब-तब पत्रकार एवं मीडिया संगठन एक होकर उसका जवाब देने का काम करते हैं और आने वाले दिनों में इसी तरह जवाब दिया जाएगा।" उन्होंने बताया कि 13 जून से ही इस प्रस्तावित कानून पर विरोध प्रारंभ हो गया था और कई पत्रकार संगठनों एवं मीडिया संगठनों ने इसका खुलकर विरोध किया था।
यह गौरतलब है कि स्वास्थ्य विभाग की ओर से जारी इस आदेश में सरकारी अस्पतालों में मीडिया कवरेज को लेकर कई तरह के प्रतिबंध लगाए गए थे, जिसका पत्रकार संगठनों ने तीखा विरोध किया था। पत्रकारों ने आदेश पर मुख्यमंत्री से इस पर हस्तक्षेप की मांग की थी। मुख्यमंत्री ने पत्रकारों की उम्मीदों पर खरा उतरते हुए तत्काल इस पर संज्ञान लिया और आदेश को रद्द करने के निर्देश दिए।

लोकतंत्र के चौथे स्तंभ की जीत:-

यह घटनाक्रम एक बार फिर साबित करता है कि लोकतंत्र के चौथे स्तंभ, यानी मीडिया की स्वतंत्रता कितनी महत्वपूर्ण है। पत्रकारों और मीडिया संगठनों की एकजुटता ने सरकार को अपने फैसले पर पुनर्विचार करने और अभिव्यक्ति की आजादी का सम्मान करने के लिए मजबूर किया। यह न केवल छत्तीसगढ़ के पत्रकारों के लिए, बल्कि पूरे देश में स्वतंत्र पत्रकारिता के लिए एक महत्वपूर्ण जीत है। यह संदेश देता है कि मीडिया पर किसी भी प्रकार के अनुचित प्रतिबंध का पुरजोर विरोध किया जाएगा और लोकतंत्र में पारदर्शिता व जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए मीडिया अपनी भूमिका निभाता रहेगा।

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