फर्जी पत्रकारों पर कार्रवाई: भारतीय मीडिया फाउंडेशन ने उठाए सवाल, की जनगणना की मांग

फर्जी पत्रकारों पर कार्रवाई:

 भारतीय मीडिया फाउंडेशन 

ने उठाए सवाल, की जनगणना की मांग


नई दिल्ली। केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय द्वारा फर्जी पत्रकारों और अवैध न्यूज़ चैनलों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की घोषणा ने मीडिया जगत में हलचल मचा दी है। वायरल खबर की सत्यता की जांच की मांग करते हुए इस पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए भारतीय मीडिया फाउंडेशन के संस्थापक ए.के. बिंदुसार ने सरकार के इस कदम को जहां एक ओर मीडिया में पारदर्शिता स्थापित करने की दिशा में उठाया गया कदम बताया, वहीं दूसरी ओर कई महत्वपूर्ण सवाल भी उठाए हैं। उन्होंने प्रधानमंत्री के डिजिटल इंडिया के दृष्टिकोण और भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने वाले पत्रकारों की स्वतंत्रता व सुरक्षा की गारंटी को भी इस बहस के केंद्र में रखा।
पारदर्शिता का स्वागत, लेकिन मापदंडों पर सवाल
बिंदुसार ने केंद्रीय सूचना प्रसारण मंत्री द्वारा केवल रजिस्टर्ड मीडिया संस्थानों को ही पत्रकारों की नियुक्ति करने और प्रेस कार्ड जारी करने की अनुमति देने के फैसले का स्वागत किया। उनका मानना है कि यह कदम स्वागत योग्य है और मीडिया में पारदर्शिता लाने में मदद करेगा। हालांकि, उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि अगर पत्रकारों में "असली और नकली" का भेद करना है, तो सबसे पहले स्पष्ट मापदंड तय करने होंगे।

डिजिटल मीडिया की उपेक्षा और यूट्यूबरों पर कार्रवाई का आधार

ए.के. बिंदुसार ने मंत्रालय द्वारा जारी बयान में फर्जी पत्रकारों और अवैध न्यूज चैनलों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की घोषणा के आधार पर स्पष्टता की मांग की है। उन्होंने स्वीकार किया कि बिना आरएनआई (Registrar of Newspapers for India) पंजीकरण के चल रहे अखबारों पर कार्रवाई करना उचित है, लेकिन यूट्यूबरों पर किस आधार पर कार्रवाई की जाएगी, इसका मापदंड तय होना चाहिए।
उन्होंने यह भी सवाल उठाया कि जब भारत माननीय प्रधानमंत्री महोदय के 'डिजिटल युग' का देश बन चुका है, तो मंत्रालय ने डिजिटल मीडिया को इस निर्देश से कैसे बाहर छोड़ दिया? बिंदुसार ने कहा, "क्या भारत डिजिटल युग से अलग हो गया है?" उनका तर्क है कि मंत्रालय का यह बयान लोकतंत्र के लिए न्यायसंगत नहीं है।


डिजिटल मीडिया की भूमिका और संरक्षण की आवश्यकता:-


बिंदुसार ने इस बात पर जोर दिया कि वर्तमान समय में यूट्यूब एवं वेब पोर्टल चलाने वाले लोग लगातार जनता की खबरों को प्रकाशित कर रहे हैं और भ्रष्टाचार के खिलाफ ज्यादातर आवाज उठा रहे हैं। वे बालू खनन माफिया, भू-माफिया, शिक्षा माफिया और अन्य माफियाओं के काले कारनामों का खुलासा बड़े तेजी के साथ करते हैं। इतना ही नहीं, डिजिटल मीडिया के ये लोग सरकार की योजनाओं को आम जनता तक पहुंचाने में भी भरपूर सहयोग करते हैं।
उन्होंने कहा कि ऐसे में सूचना प्रसारण मंत्रालय को इन डिजिटल पत्रकारों और कंटेंट क्रिएटर्स को डराने की बजाय उनका संरक्षण करने, सुरक्षा करने और उन्हें नियमित व रजिस्टर्ड करने की व्यवस्था करनी चाहिए।

जनगणना और सरल रजिस्ट्रेशन प्रक्रिया की मांग:-

अपनी टिप्पणी में, बिंदुसार ने बताया कि प्राप्त सूचना के अनुसार मंत्रालय ने सभी राज्यों के प्रेस सूचना विभागों को निर्देश जारी किए हैं कि केवल आरएनआई से पंजीकृत अखबार या पत्रिका और सूचना प्रसारण मंत्रालय से पंजीकृत टीवी/रेडियो चैनल ही पत्रकार नियुक्त कर सकते हैं। इस पर उन्होंने फिर से डिजिटल मीडिया को शामिल न किए जाने पर सवाल उठाया।
ए.के. बिंदुसार ने निष्कर्ष निकाला कि इस स्थिति में सूचना प्रसारण मंत्रालय को पुनर्विचार करना चाहिए। उन्होंने सुझाव दिया कि सबसे पहले सभी पत्रकार एवं मीडिया तथा सामाजिक संगठनों की एक बैठक बुलाकर ठोस रणनीति बनानी चाहिए और पत्रकार तथा सामाजिक कार्यकर्ताओं की एक जनगणना करनी चाहिए। उनका मानना है कि रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया को सरल किया जाना चाहिए ताकि लोकतंत्र के चौथे स्तंभ यानी मीडिया को सशक्त बनाया जा सके और नागरिक पत्रकारिता को स्थापित किया जा सके।

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