विजयादशमी पर पत्थर से बने पुरातत्व शस्त्रों का किया गया पूजा-अर्चना

विजयादशमी पर पत्थर से बने पुरातत्व शस्त्रों 

का किया गया पूजा-अर्चना


दुमका, 2 अक्टूबर (हि.स.)। विजयादशमी के अवसर पर अस्त्र-शस्त्र की पूजन-परम्परा प्राचीनकाल से ही चली आ रही है। इस अवसर पर दुमका में लेखक सह पुरातात्त्विक खोजकर्ता पंडित अनूप कुमार वाजपेयी ने जो अस्त्र-शस्त्रों की पूजा की वह अपने-आप में अनूठी है। उन्होंने फूल-बेलपत्र, चन्दन आदि सामग्रियों से जिन औजारों की विधिवत पूजा की वे धातु के नहीं, बल्कि पत्थरों के हैं। उनका कहना है कि भारी संख्या में इन औजारों को संताल परगना के जंगलों, पहाड़ों एवं नदी किनारों से खोज-खोजकर इकट्ठा किया गया है। औजारों में विभिन्न प्रकार की खुरचनी, फलक (ब्लेड), टंगली (छोटा टांगा), छूरा, हथौड़ी, भाला एवं तीर के अग्रभाग सहित अन्य शामिल हैं।

उन्होंने कहा कि लाखों वर्ष पूर्व के इन औजारों में हमारे पूर्वजों के संघर्ष और उत्कर्ष की गाथाएं लिखी हैं। वे किसने उद्यमी थे, उन्होंने किस तरह अनुसन्धान किये, किस तरह के औजारों को बनाया, ये सब हमारे लिये महत्त्वपूर्ण, रोचक एवं शोध का विषय है। इन्हीं औजारों से उन्होंने अपना भविष्य गढ़ लिया। हमलोग आज जिस व्यवस्थित जीवन को जीते हैं, उसमें इन प्रस्तर औजारों का आधारभूत महत्त्व है।

धातुयुग तो बहुत बाद में आया। इन ढेले-पत्थरों से आरम्भ होकर ही हमारी सभ्यता और विकास की यात्रा वर्तमान तक पहुंची है। इन्हीं औजारों से पाषाण-युगीन मानवों ने अपनी विजय गाथा लिखी, इसलिये विजयादशमी के पुनित अवसर पर ये हमारे लिये विशेषरूप से वन्दनीय हैं।

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