(लघु कथा ) मन के हारे हार है मन के जीते जीत

(लघु कथा ) मन के हारे हार है मन के जीते जीत



कई बार मानसिक दुर्बलता हम पर हावी हो जाती है और वह इस प्रकार हावी होती है की कार्य करने की क्षमता होते हुए भी हम नकारात्मक हो जाते हैं और जो कार्य हम कर सकते हैं वह भी नहीं करते ।हम दुर्बल हैं और यह हम से नहीं होगा यह कहकर अपने मानसिक स्थिति को और कमजोर बना लेते हैं ,और उस कार्य को करने का एक भी बार प्रयास ही नहीं करते। जैसे कि आज मैं आपको यहां एक छोटी सी कहानी सुनाने जा रही हूं।
एक बार एक सज्जन ने जोकि गांव गांव में हाथी को ले जाकर उसके नाम पर भिक्षा मांगता था। उसने एक हाथी की मानसिकता केसे बदली। चुकी हाथी बहुत बलवान होता है और इंसान से कई ज्यादा ताकतवर भी इसलिए एक बलवान हाथी कभी भी एक इंसान की नहीं सुनेगा तो उस व्यक्ति ने एक वयस्क हाथी लेने की जगह एक छोटा बच्चा हाथी खरीदा और अपने साथ घुमा कर जगह-जगह नगर मैं भीख मंगाता।
और भिक्षा मांगने के बाद वह उस हाथी को एक बड़े से पेड़ के साथ जंजीरों से बांध देता रोज में यही कार्य करता। और वह बच्चा हाथी रोज अपने आप को छुड़ाने की कोशिश करता अब क्योंकि मैंने यहां आप सभी से मानसिकता की बात की है तो देखिए वह एक विशाल वृक्ष से बांधा गया था। जिसे छुड़ाना असंभव है उस बच्चे हाथी के लिए तो उसकी मानसिकता यही रही होगी ,प्रयास कर कर के जब वह असफल रहा तब उसने प्रयास ही करना छोड़ दिया और वह दिन पर दिन बड़ा और बड़ा होता चला गया अब उसकी दिनचर्या नगर में घूम कर अपने मालिक के साथ भिक्षा मांगना थी और मालिक उसको भिक्षा मांगने के बाद यूं ही पेड़ से बांध दिया करता था । वह अपने आप को छुड़ाने की कोशिश नहीं करता था । अब मालिक उसको पहले की तरह विशाल वृक्ष से ना बांधकर एक छोटे से वृक्ष से ही बांध देता परंतु हाथी के मन में बचपन से ही बैठ गया था कि कोशिश करने का कोई फायदा नहीं क्योंकि अब कुछ नहीं हो सकता। और वह हाथी वही वृक्ष के पास बैठ जाता और एक भी प्रयत्न ना करता भागने का क्योंकि उसकी मानसिकता बचपन से ही ऐसी बना दी गई थी। वह तो हाथी था इसीलिए उसमें शायद इतनी बुद्धि नहीं कि वह " क्या कर सकता है और क्या नहीं " परंतु हम इंसान हैं और भगवान ने हमें यह सोच पाने का निर्णय ले पाने का पूरा अवसर दिया है ।
इसीलिए किसी भी कार्य में यदि हमें असफलता प्राप्त होती है तो वह जरूर हमारी ही किसी चूक के कारण हो रही है , इसीलिए कहा गया है मन के हारे हार है मन के जीते जीत । हमें अपनी गलती को सुधार कर हमेशा प्रयत्नशील रहना चाहिए एवं पुनः प्रयास करते रहना चाहिए सफलता निश्चित ही प्राप्त होती है।


प्रतिभा दुबे (स्वतंत्र लेखिका)
ग्वालियर मध्य प्रदेश


अकेली


मैं कहा हूं अकेली, कलम है
मेरी पक्की सहेली
ना थकती ना रूकती कभी
मेरी भावनाओं को समझती है।।
कुछ तो है कलम की तागत
जो चुपचाप काम करती है
तलवार जो ना कर सके
इसकी स्याही बार करती है।।
ना समझना कम कीमत का इसे
ये हर किसी को कहा मिलती है
राजनेताओं की किस्मत भी
रोज कलम ही बदलती है।।
भाव यह मेरा है मेरी कलम ही
मेरी शक्ति है , पहचान है कलम से
यह मेरे ह्रदय में बसती है।।
प्रतिभा दुबे की कलम से.........


प्रतिभा दुबे " स्वतंत्र लेखिका"
ग्वालियर (मध्य प्रदेश)

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