स्वदेशी रहे " दीपावली "
हमारे पारंपरिक प्रतीकों का पर्व उत्साह एवं पौराणिक कथाओं को लेकर आस्था से भरी ये दीपावली आप सभी के लिए शुभ हो ।
दीपावली का उत्सव पूरे भारतवर्ष से लेकर अब विदेशों में जहां जहां भी हम भारतीय लोग निवास करते हैं , वहां इसे बड़ी धूमधाम के साथ मनाया जाता है अतः अब तो विदेशों में भी इस उत्सव की झलकियां नजर आने लगी है।
यह पंच उत्सव या 5 दिन का त्यौहार के नाम से भी जाना जाता है इस त्यौहार में धनतेरस , नरक चौदस , दीपावली , गोवर्धन पूजा, भाई दूज शामिल है। सामान्य तौर पर दीपावली पर कई सारे पारंपरिक और मूल रीति-रिवाजों के साथ पूजा अर्चना की जाती है। इसमें प्रत्येक दिन की पूजा के अलग-अलग विधि विधान है।
हालांकि दिवाली पर पूजा पाठ के साथ हम कई तरह के कार्य भी करते हैं जिसमें सोने चांदी की खरीदारी बर्तन इत्यादि के साथ साज सज्जा का सामान भी खरीदते हैं । पौराणिक कथाओं के अनुसार ऐसा माना जाता है दीपावली रात को माता लक्ष्मी प्रत्येक घर में आकर आशीर्वाद देती है। इसीलिए प्रत्येक घर को रंग रोगन से साफ सफाई करके ही सजाया जाना इस त्यौहार का प्रमुख कारण है।
अब जब साज-सज्जा की बात आती है तो बाजार में कई प्रकार के सामान उपलब्ध होते हैं ,जिनसे हम घर को सजा सके। पारंपरिक रीति-रिवाजों के अनुसार घर में हाथ की बनी रंगोली डालना ,मोर पंख से सजावट के अतिरिक्त आधुनिक तौर पर भी सजावट की जाने लगी है। इसमें झिलमिल करती हुई बिजली के चलने वाली झालर प्रमुख रूप से खरीदी जाती हैं। आजकल मार्केट में दो प्रकार की झालर उपलब्ध है परंतु देखा जा रहा है कि अन्य देशों से क्रय की जाने वाली सामग्री ज्यादा उपयोगी नहीं है । इसीलिए लोग भारत में बनाए जाने वाली झालरों का पुनः उपयोग अधिकतर करने लगे हैं। इन झालरों के साथ साथ मिट्टी के बने कई प्रकार के दीप मार्केट मैं उपस्थित रहते है । गौ के गोबर को शुद्ध माना गया है इसीलिए गाय के गोबर से बनने वाली दीपक भी लोग आजकल अपनी खरीदारी में शामिल करते हैं। समय परिवर्तन के साथ लोगों की सोच भी बदल रही है ,भारतीय जन दीपावली को स्वच्छ और स्वदेशी बनाने का पूरा प्रयास करने लगे है । आखिर हम सब भारतीय भी चाहते हैं कि स्वदेशी रहे हमारी दीपावली।
प्रतिभा दुबे (स्वतंत्र लेखिका)
ग्वालियर
मध्य प्रदेश, भारत

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